Responsive Ad Slot

Latest

latest

प्रस्तावना

Monday, May 27, 2019

/ by Satyagrahi
जब गाँधीजी का जन्म हुआ, तब देश में अंग्रेजी हुकूमत का साम्राज्य था । यद्यपि 1857 की क्रांति ने ब्रिटिश सत्ता को हिलाने का प्रयास किया था, परंतु अंग्रेजी शक्ति ने उस विद्रोह को कुचल कर रख दिया । अंग्रेजो के कठोर शासन में भारतीय जन-मानस छटपटा रहा था । अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अंग्रेज किसी भी हद तक अत्याचार करने के लिए स्वतंत्र थे । देश की नई पीढ़ी के जन्म लेते ही, ब्रिटिश हुक़ूमत गुलामी की जंजीरों से उन्हें जकड़ रही थी । लगभग डेढ़ दशक तक अंग्रेजों ने भारत पर एकछत्र राज्य किया ।

जब गांधीजी की मृत्यु हुई, तब तक देश पूरी तरह से आज़ाद हो चुका था। गुलामी के काले बादल छँट चुके थे । देश के करोड़ो मूक लोगों को वाणी देने वाले इस महात्मा को लोगों ने अपने सिर-आँखों पर बैठाया । इतिहास के पन्नों में गांधीजी का योगदान स्वर्णाक्षरों में लिखा गया । गांधीजी का जीवन एक आदर्श जीवन माना गया। उन्हें भारत के सुंदर शिल्पकार की संज्ञा दी गई । उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए देशवासियों ने उन्हें 'राष्ट्रपिता' की उपाधी दी ।

स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के योगदान को भुला पाना एक टेढ़ी खीर है । ब्रिटिश हुकूमत को नाको चने चबवाने वाले इस महात्मा के कार्य मील का पत्थर साबित हुए। देशवासियों के सहयोग से उन्होंने वह कर दिखाया, जिसका स्वप्न भारत के हर घर में देखा जाता था, वह स्वप्न था - दासता से मुक्ति का, अंधेरे पर उजाले की विजय का । गांधीजी के निर्देशन में देश के करोड़ों लोगों ने आततायी शक्ति के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी । वे अपने आप में राजा राम मोहन राय, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद,स्वामी दयानंद सरस्वती, दादाभाई नौरोजी आदी थे। वास्तव में उनका व्यक्तित्व इन सभी का मिश्रण था । उनके विचार-चिंतन में सभी महापुरुषों की वाणी को शब्द मिले थे । इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय राजनीति के फलक पर ऐसा नीतिवान और कथन-करनी में एक जैसा आचरण करने वाला नेता अन्य कहीं भी दिखाई नहीं देता ।

गांधीजी ने हमेशा दूसरों के लिए ही संघर्ष किया। मानो उनका जीवन देश और देशवासियों के लिए ही बना था । इसी देश और उसके नागरिकों के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया । आने वाली पीढ़ि की नज़र में मात्र देशभक्त, राजनेता या राष्ट्रनिर्माता ही नहीं होंगे, बल्कि उनका महत्व इससे भी कहीं अधिक होगा । वे नैतिक शक्ति के धनी थे,उनकी एक आवाज करोड़ों लोगों को आंदोलित करने के की क्षमता रखती थी । वे स्वयं को सेवक और लोगों का मित्र मानते थे । यह महामानव कभी किसी धर्म विशेष से नहीं बंधा शायद इसीलिए हर धर्म के लोग उनका आदर करते थे । यदि उन्होंने भारतवासियों के लिए कार्य किया तो इसका पहला कारण तो यह था कि उन्होंने इस पावन भूमि पर जन्म लिया, और दूसरा प्रमुख कारण उनकी मानव जाति के लिए मानवता की रक्षा करने वाली भावना थी ।

वे जीवनभर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते रहे। सत्य को ईश्वर मानने वाले इस महात्मा की जीवनी किसी महाग्रंथ से कम नहीं है । उनकी जीवनी में सभी धर्म ग्रंथों का सार है। यह भी सत्य है कि कोई व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। कर्म के आधार पर ही व्यक्ति महान बनता है, इसे गांधीजी ने सिद्ध कर दिखाया । एक बात और वे कोई असाधारण प्रतिभा के धनी नहीं थे । सामान्य लोगों की तरह वे भी साधारण मनुष्य थे । रवींद्रनाथ टागोर, रामकृष्ण परमहंस, शंकराचार्य या स्वामी विवेकानंद जैसी कोई असाधारण मानव वाली विशेषता गांधीजी के पास नहीं थी । वे एक सामान्य बालक की तरह जन्मे थे। अगर उनमें कुछ भी असाधारण था तो वह था उनका शर्मीला व्यक्तित्व । उन्होंने सत्य, प्रेम और अंहिंसा के मार्ग पर चलकर यह संदेश दिया कि आदर्श जीवन ही व्यक्ति को महान बनाता है । यहां यह प्रश्न सहज उठता है कि यदि गांधी जैसा साधारण व्यक्ति महात्मा बन सकता है, तो भला हम आप क्यों नहीं ?



उनका संपूर्ण जीवन एक साधना थी, तपस्या थी । सत्य की शक्ति द्वारा उन्होंने सारी बाधाओं पर विजय प्राप्त की । वे सफलता की एक-एक सीढ़ी पर चढ़ते रहे । गांधीजी ने यह सिद्ध कर दिखाया कि दृढ़ निश्चय, सच्ची लगन और अथक प्रयास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है । गांधीजी की महानता को देखते हुए ही अल्बर्ट आइंटस्टाइन ने कहा था कि, आने वाली पीढ़ी शायद ही यह भरोसा कर पाये कि एक हाड़-मांस का मानव इस पृथ्वी पर चला था । 



सचमुच गांधीजी असाधारण न होते हुए भी असाधारण थे । यह संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए गौरव का विषय है कि गांधीजी जैसा व्यक्तित्व यहाँ जन्मा । मानवता के पक्ष में खड़े गांधी को मानव जाति से अलग करके देखना ए बड़ी भूल मानी जायेगी। 1921 में भारतीय राजनीति के फलक पर सूर्य बनकर चमके गांधीजी की आभा से आज भी हमारी धरती का रूप निखर रहा है । उनके विचारों की सुनहरी किरणें विश्व के कोने-कोने में रोशनी बिखेर रही हैं । हो सकता है कि उन्होंने बहुत कुछ न किया हो, लेकिन जो भी किया उसकी उपेक्षा करके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नहीं लिखा जा सकता ।

No comments

Post a Comment

Don't Miss
© all rights reserved