की उसका हर वार हक़ीक़त बनकर मेरे सपनों पर आ लगे ।
इक हसीन खयाल को हकीक़त मान बैठे हैं,
खता हमारी है की खुद से ही खुद को जुड़ा बैठे हैं।।
की हबीब और रकीब में फर्क समझ नहीं आ रहा, ऎ ज़िंदगी, क्या इसे ही मोहब्बत कहते हैं?
की चारों तरफ से सन्नाटे शोर किए जा रहे हैं,
समझ नहीं आता कि ये डरा रहे हैं या प्यार से सहला कर मेरा मन बहला रहे हैं!
गुर्बत्त में बहुत हिम्मत होती है स़ाद,
कि देख आज हम भी कश्मीर/जन्नत में आशियाना बसाने जा रहे हैं।।
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Deeksha |
(Deeksha is an event organiser by profession, writes as a salvation.
Coming from the cozy streets of Delhi, is a 22 year old girl, loves to see life in her own different way.
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