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क्या हिन्दी सम्भाल सकती है देश का बोझ?? - उत्कर्ष

Saturday, September 21, 2019

/ by प्रतीक कुमार

अमित शाह के हिंदी दिवस पर दिए गए बयान से देश दो तरह के मतों मे विभाजित हो गया. एक तो वो जो गृहमंत्री की हाँ मे हाँ मिलाते हुए मानते है कि अब देश के लिए एक भाषा होनी चाहिए जिससे विदेशी भाषाओं को जगह ना मिल पाए, दूसरे वो जो मानते है कि वन नेशन वन लैंग्वेज वाली बात पूरी तरह से हिंदी की तानाशाही है.

जाहिर है कि विदेशी भाषाओं से माननीय गृहमंत्री का तात्पर्य अंग्रेजी से रहा होगा, क्युकि मैन्डरिन और स्पेनिश तो भारत मे गिने चुने लोग ही बोलते हैं.
लेकिन क्या पूरे देश से इस तरह अंग्रेजी का नस्तेनाबूत संभव है..?? या फिर हिंदी मे इतना सामर्थ्य है कि वो अँग्रेजी का एक मज़बूत विकल्प बन सके..??
तो जवाब होगा नहीं...

निसंदेह अंग्रेजी एक ग्लोबल लेंग्वेज है और किसी भी क्षेत्र मे हिन्दी इसकी बराबरी नहीं कर सकती फिर चाहे वो कला हो, शिक्षा हो, मनोरंजन हो या विज्ञान हो. जहां विश्व का सबसे सटीक इतिहास अँग्रेजी मे लिखा गया है तो वही विज्ञान से संबंधित सभी रहस्य की रचना अंग्रेजी मे हुईं है, चाहे विधि का विषय हो या मेडिकल का या फिर सिनेमा और लिटरेचर का, अधिकतर क्षेत्रों मे सबसे बेहतरीन काम अँग्रेजी मे किया गया है.

जाहिर सी बात है जब मानव विकास मे किसी भाषा का इतना दखल हो तो उसको बॉयकॉट करके आप रेस मे बहुत पीछे रह जाएंगे और देश को भी पीछे ले जाएंगे.

अगर आपको दुनिया के साथ कदम मिला कर चलना है तो उनके बराबर ही पढ़ना होगा न कि उनके लिखे हुए का ट्रांसलेसन उदाहरणार्थ उष्मागतिकी के नियम पढ़ने वाला बच्चा Law of Thermodynamics पढ़ने वाले बच्चे जितना कॉन्फिडेंस नहीं ला पाएगा. जैसे अंग्रेजी ने डकैत, समोसा, लाठी आदि तमाम हिन्दी शब्दों को अपनी भाषा में समाहित कर लिया वैसे ही हिन्दी को भी करना चाहिए. Potential difference को विभवान्तर मत करिये Potential difference ही रहने दीजिए. 

थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी जब लिखी ही अंग्रेजी मे गई है तो हिन्दी मे सापेक्षता का सिद्धांत पढ़ाने वाला मास्टर हाथ पांव ही पटकता रह जाएगा. ये बिल्कुल वैसी ही बात है जैसे Recliner का टिकट लेकर Avengers Endgame हिन्दी मे देखने वाला उतने मजे नहीं ले पाएगा जितना फर्स्ट रो मे बैठा बंदा अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ देख के ले लेगा.

जो लोग अंग्रेजी को खारिज करके हिन्दी को प्यार करने की दलील दे रहें हैं दरअसल वो लोग कुंठा से भरे हुए लोग है, ऐसे लोग हिन्दी मे भले ही पारंगत हों लेकिन अँग्रेजी मे फिसड्डी और ना ही अंग्रेजी सीखना चाहते है तो इसलिए हुआं हुआं करना शुरू कर दिया कि ये अंग्रेजो की भाषा है अंग्रेजो ने हम पर राज किया. हम अंग्रेजो के गुलाम थे अब अँग्रेजी के नहीं बनेंगे.

ये विशुद्ध बेवकूफ़ी वाला तर्क है आप अंग्रेजी का विरोध करके अत्याचार करने वाले अंग्रेजो का अंश मात्र भी नुकसान नहीं कर सकते बल्कि बदले की भावना और अंध राष्ट्रप्रेम से अपने पैर पर कुल्हाड़ी अवश्य मार लेंगे.

दूसरी सबसे बड़ी बात आज अंग्रेजी का शब्दकोष इतना बड़ा है कि उसमे हर तरह की शब्दों की जगह है, हर एक क्रिया के लिए शब्द है, जैसे बारिश के बाद मिट्टी से उठने वाली भीनी खुशबु को Petrichor कहते हैं, मुझे नहीं लगता हिन्दी मे भी इसके लिए कोई शब्द होगा.

आज इंग्लिश की डिक्शनरी Webster मे लगभग साढ़े सात लाख (7,50000) शब्द हैं तो वही हिन्दी की डिक्शनरी मे मुश्किल से डेढ़ से दो लाख (1,50000 - 2,00000) शब्द अधिकतम.

डॉ.  प्रो. राजेंद्र प्रसाद सिंह 

भाषा वैज्ञानिक डॉ.  प्रो. राजेंद्र प्रसाद सिंह अपने एक व्याख्यान मे कहते हैं कि अंग्रेजी ने बहुत सी भाषाओं के शब्दों को लेकर अंग्रेजी से अपने को समृद्ध किया और संसार की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक है जैसे अलमिरा को हम लोग मान लेते हैं कि ये अंग्रेजी भाषा का शब्द है, लेकिन वह पुर्तगाली भाषा का शब्द है.

इसी तरह रिक्शॉ को हम मान लेते हैं कि अंग्रेजी का है, लेकिन वह जापानी भाषा का है. चॉकलेट को हम मान लेते हैं कि ये अंग्रेजी भाषा का शब्द है, लेकिन वह मैक्सिकन भाषा का है. बीफ को मान लेते हैं कि अंग्रेजी का है, लेकिन वह फ्रेंच भाषा का है.

हिन्दी में वही छुआछूत की बीमारी है जो हमारे समाज में है. लोक बोलियों के शब्दों को हम लेते नहीं हैं. कह देते हैं कि ये गंवारू शब्द हैं.
कोई बोल देगा कि तुमको लौकता नहीं है? तो कहेंगे कि कैसा प्रोफेसर है! कहता है तुमको लौकता नहीं है. इसी लौकना शब्द से कितना बढ़िया शब्द चलता है हिंदी में, परिमार्जित हिंदी में, छायावादी कवियों ने प्रयोग किया-अवलोकन, विलोकन. उसमें लौकना ही तो है. कितनी मर्यादा और उंचाई है इन शब्दों में. उसी को आम आदमी बोल देता है कि तुमको लौकता नहीं है? लौकना और देखना में सूक्ष्म अंतर है.

इस तरह आप देखिए कि लोक बोलियों के शब्दों को लेने से हम लोग परहेज कर रहे हैं. विदेशी भाषा के शब्द लेने से आपकी भाषा का धर्म भ्रष्ट हो रहा है. क्रिकेट का हिंदी बताओ, बैंक का हिंदी बताओ, टिकट की हिंदी बताओ. टिकट का हिंदी खोजते-खोजते गाड़ी ही छूट जाएगी.

यह छुआछूत का देश है इसीलिए हम विदेशी शब्द नहीं लेते कि यह तो विदेशी नस्ल का शब्द है, इसे कैसे लेंगे? यही कारण है कि हिंदी का विकास नहीं हो रहा है. अंग्रेजी बढ़ रही है लेकिन हिंदी का विकास वैसा नहीं हो रहा है. हिंदी को छुआछूत की बीमारी है. हिंदी में शब्दों की संख्या की कमी नहीं हैं.

पहले हमारे यहां हिंदी की 18 बोलियां मानी जाती थीं. अब 49 मानी जाती हैं. हिंदी भारत के दस प्रांतों में बोली जाती है. इन दस प्रांतों की 49 बोलियों में बहुत ही समृद्ध शब्द भंडार है. हर चीज को व्यक्त करने के लिए शब्द हैं, लेकिन उसको अपनाने के लिए हम लोगों को परेशानी है.

सुधीर मिश्रा
इन सब से थोड़ी अलग बात बॉलीवुड डायरेक्टर सुधीर मिश्रा कहते हैं (मुंबई मे दिए एक इंटरव्यू में) महिलाएं और दलित इंग्लिश जल्दी सीखते है या अंग्रेजी बोलने को प्राथमिकता देते हैं उसका कारण है, कारण ये है कि इंग्लिश मे शोषण और दमन के शब्द कम हैं और हिंदी मे ज्यादा. ये बात किस हद तक लागू होती है यह एक उनका अपना मत है और चर्चा का विषय हो सकता है. 

हालांकि गौरव सोलंकी (फिल्म आर्टिकल 15 के राइटर) अंग्रेजी वालों को हिन्दी के पक्ष मे नसीहत देते हुए कहते हैं कि सारी अच्छी बातें अंग्रेजी मे करने की आदत छोड़ दो. प्लीज़ वे भाषाएं बोलो और लिखो, जिनसे तुम्हारी बात इस देश के लोगों तक पहुंच सके. उन्हीं भाषाओं मे उनकी आत्माएं दुखती हैं, उन्हीं भाषाओं मे उन्हें गुस्सा आता है. उन्हें न्यूयॉर्क टाईम्स का हवाला तो दो, पर उनसे पहले ये पूछो वो उसे पढ़ क्यों नहीं पा रहे?

यह सब हो जाए, तब नसीहत देना और अफसोस करना शुरू करो. लेकिन अपनी किताबों और लंबे आर्टिकल्स का अहंकार छोड़कर.

प्लीज़ इस देश की कहावतें सुनो, कोयले पहचानो और उनके बराबर चलो. यूँ एक फ्लोर ऊपर चलोगे तो एकदिन ट्विटर पर ही घर बनाना पड़ेगा

हिन्दी हमारे देश की भाषा है निसंदेह हमे उससे प्यार है और होना भी चाहिए लेकिन ये प्यार दूसरी भाषाओं के लिए वैमनस्यता नहीं दिखाता. 

और हिंदी को प्रसारित करने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की क्यूँ हम सबकी क्यूँ नहीं. हमे कोशिश करनी चाहिए कि हिन्दी मे भी वैसा ही लिटरेचर लिखा जाए जैसा अंग्रेजी मे लिखा जाता है, हिन्दी मे भी ऐसा सिनेमा बने जो ऑस्कर के लिए जाए, हिन्दी मे भी उच्च स्तरीय शोध हो.

हिंदी अन्य सभी भाषाओं से बराबरी करने से श्रेष्ठ बनेगी ना कि थोप देने से.


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A Law student, Autodidact and philomath

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