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खून की बून्द और लाखों जीवन- संदीप नाईक

Saturday, June 13, 2020

/ by Satyagrahi
फोन की घण्टी बजती है स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर है मैं फोन उठाता हूँ हेलो कहता हूँ और उधर से हड़बड़ाहट में आवाज आती है
" हेलो सर , आपका नम्बर सुधीर ने दिया है मुझे मेरे बच्चे के लिए खून चाहिए, ओ निगेटिव ग्रुप है सर प्लीज़ कुछ इंतज़ाम  करवा दीजिये हम लोग बाहर के है किसी को जानते नही है "

ये पैनिक कॉल है उनके लिए जो अचानक से मुसीबत में आ गए है पर उनके लिए यह पैनिक नही है जिन्हें फोन आया है , वे जवाब देते हैं हां देखते है किसी को खोजते है और फोन रख दिया जाता है

जिसे खून चाहिए अपने किसी भी परिजन के लिए या दोस्त के लिए वो लगातार फोन घूमा रहा है पर डोनर नही मिल रहे, मिल भी रहे तो व्यस्त है , शहर से बाहर है, काम पर है या अभी कल ही किसी को दिया था अब तीन माह दे नही पायेंगे - ये कुछ जवाब है जो अमूमन रक्त की मांग करने पर मिलते है. मुश्किल से पांच या दस प्रतिशत लोग हाँ कहते है और समय पर बताई हुई निर्धारित जगह पर खून देने जाते है 


मान्यताएं और समस्या 

भारतीय समाज मे रक्तदान अभी भी मिथकों के बीच गुजर रहा है रक्त जैसी चीज के लिए हम अभी भी मनुष्य के दान पर ही निर्भर है और इसका मनुष्य के अतिरिक्त कोई विकल्प नही है परंतु मान्यताएं और कई सारे ऐसे मानवीय पहलू है जिन्होंने इसे प्रचलित किया और समाज मे स्वीकार्य बनाया है , आज बहुत से लोग इसे अपना पुनीत कर्तव्य मानते हुए सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखकर रक्तदान करते है

स्वास्थ्य की एक शासकीय परियोजना में काम करते हुए देखता था कि आदिवासी क्षेत्रों के दूरस्थ इलाकों से महिलाएं जचकी के लिए शासकीय अस्पतालों में संस्थागत प्रसव के लिए आती थी जिनका हीमोग्लोबिन फूल टर्म पर चार या पांच ग्राम प्रति लीटर होता था, जब उनके पति या रिश्तेदारों से खून देने की अपील की जाती तो वे कहते थे कि हम खून नही देंगे - बीबी मरती हो तो मर जाये, पूछने पर कहते थे कि खून देने से कमजोरी आती है और नपुंसकता बढ़ती है , यह हालत तो हुई ग्रामीण क्षेत्रों की जहां कुपोषण या अल्प पोषण से महिलाएं कमजोर और गम्भीर एनीमिया की शिकार रहती है साथ ही चार से छह बच्चों को जन्म देना उनकी नियति बन जाता है पर शहरी क्षेत्रों में हालात बहुत अच्छे नही है

मेरे जानने वालों में कई मित्रों के बच्चे है जो थैलेसीमिया से पीड़ित है और उन्हें हर माह खून की जरूरत पड़ती है पर शहरी इलाकों में एक यूनिट खून का इंतज़ाम करने में अक्सर हाथ पांव फूल जाते है, कई गम्भीर रोग है जिनमे मरीजों को नियमित रूप से खून की आवश्यकता होती है , मेरे छोटे भाई की किडनी सन 2003 में जब फेल हुई तो उसका डायलिसिस चालू हुआ , दो वर्षों बाद ही उसे हर डायलिसिस के समय एक यूनिट खून की आवश्यकता पड़ने लगी, जान - पहचान में अक्सर मैं निगाह रखता था कि कौन सम्भावित रक्तदाता हो सकता था यहाँ तक कि मैंने मित्रों, रिश्तेदारों के नाम के साथ उनका रक्त समूह भी फोन बुक में सेव कर लिया था मसलन अंबुज "ओ पॉजिटिव" सोनी आदि और जब ये नम्बर बार बार आंखों के सामने से गुजरते तो हमेशा याद रहता , भाई का डायलिसिस उसकी मृत्यु यानि 2014 तक चला और मैं हर हफ्ते दो दानदाताओं की तलाश में रहता , रिज़र्व दाताओं की एक पृथक सूची थी उस समय व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर ही रक्त मिलता था

जीवन का ध्येय बनाये है 

आज सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न संगठनों और समाजों के रक्तदाताओं के समूह बने है, वाट्सएप समूह है जहां अपील करने पर थोड़ी सुलभता से रक्त मिल जाता है, रेडियो पर भी आप खून की आवश्यकता के लिए उदघोषणा करवा सकते है , ब्लड बैंक में डोनर्स की सूची होती है. साथ ही अनेक लोगों ने इसे अपना ध्येय बना लिया है इंदौर में दीपक नाईक के लिए रक्तदान सबसे बड़ी और जरूरी प्राथमिकता है , उन्होंने अभी तक 128 रक्त दान करके रिकॉर्ड बनाया है - वे कहते है रक्त ऐसी चीज है जो बाज़ार में उपलब्ध नही है, इसलिये मेरे जीवन का उद्देश्य ही अब यही है, मेरे साथ मेरी टीम में सैंकड़ो लोग जुड़े है - हमे सूचना मिलने पर हममें से कोई भी तुरन्त रक्त दान करने पहुंच जाता है, दीपक कहते है अब हम थोड़ा सावधान भी है - हम कोशिश करते है कि रक्त उन लोगों को मिलें जो बच्चे है, युवा है और जिनमे जीवन की संभावना है, केंसर आदि जैसे गम्भीर मरीजों को देना अच्छी बात है पर इन्हें नियमित चाहिये और अंत सबको मालूम है इसलिये हम अब कोशिश करते है कि सम्भावनों से भरे जीवन को मदद पहुंचे, लोग रक्त का कई बार ग़लत इस्तेमाल भी करते है, कई रैकेट इसमें शामिल है बेहतर होता है कि आप इंदौर में है तो एमवहाय अस्पताल के ब्लड बैंक में जाकर दान करें और सम्पर्क करें जहां सेवा भावी समर्पित लोगों की टीम पूरी पारदर्शिता से काम करती है

सुनील धर्माधिकारी एक बैंक में काम करते है साथ ही समाज कार्य मे उनकी रुचि है - अपने मित्र प्रशांत बडवे के साथ मिलकर वे तरुण युवा मंच संचालित करते है जिसमे पांच सौ से ज्यादा युवा जुड़े है, ये युवा सूचना मिलने पर तुरन्त रक्तदान करने पहुंच जाते है और यह सब सेवा भाव से किया जाता है, सुनील बताते है कि बस हमे सूचना सही समय पर मिलना चाहिये - अभी प्रवासी मजदूरों के केस में एबी रोड इंदौर से लाखों लोग निकलें, तरुण युवा मंच ने जहां भोजन आदि की व्यवस्था की वही रोगियों को, गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान रक्त भी उपलब्ध करवाया 

पटना के कुमार प्रतिष्क अपने महाविद्यालय के छात्रों के साथ पटना शहर और आस पास के जिलों में रक्तदान करने वालों का समूह चलाते है, चमकी बुखार के समय उन्हें यह काम करने की प्रेरणा मिली और तब से वे इस पुनीत कार्य मे जुटे हुए है , वे कहते है " अभी भी रक्तदान को।लेकर पढ़े लिखें युवाओं में भ्रांतियां है , हम लगातार बात करके, डॉक्टर्स के व्याख्यान करवा कर उनकी शंकाओं को दूर करते है और रक्तदान के लिए प्रेरित करते है वे कहते है "रक्तदान महादान के मुहिम से जुड़ने पर हमें इससे जुड़ी कुछ परेशानियां भी देखने को मिली 

कई बार ऐसा होता है कि घर में बाकी सदस्यों में होने के बावजूद ब्लड के लिए कॉल करते हैं उन्हें यह लगता है कि इनका तो काम ही है ,इनसे व्यवस्था हो जाएगा,खुद देकर क्या करें , इस वजह से ऐसा भी होता है कि जिन्हें असल में जरूरत होती और जिनके पास उपलब्ध हो इसमें फर्क कर पाना मुश्किल होता है 

इसमें कोई दो राय नहीं की कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि या समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ऐसे मुहिम से जुड़ते हैं , पर चंद लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने निजी स्वार्थ या कह लें पैसों के लिए इन सारे मुहिम से जुड़ कर इसे दूषित भी करते हैं.  हम लोगों के पास भी कई ऐसे फोन कॉल आए जिसमें उन्होंने यह कहा की व्यवस्था करवा दीजिए रुपयों की चिंता मत कीजिए , पता नही शायद या तो मालूम नहीं कि रक्त पैसों में नहीं मिलता या वह समझते कि पैसा देख अच्छे अच्छे लोग बुरे बन जाते 

वास्तविकता यह है कि जब तक लोग ऐसे कार्यों से जुड़े लोगों को सराहने के साथ साथ खुद की मुहिम का हिस्सा नहीं बनेंगे तब तक रक्त की कमी से जान जाती रहेगी" 

रक्तदान दिवस 

विश्व रक्तदान दिवस हर वर्ष 14 जून को मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस दिन को रक्तदान दिवस के रूप में घोषित किया गया है. देश मे नेशनल एड्स कंट्रोल संस्थान, रेडक्रॉस के साथ कई स्वैच्छिक संगठन है जो रक्तदान को बढ़ावा देने का काम करते है

रक्त हमारे शरीर का वह तरल पदार्थ है जो शरीर की कोशिकाओं को आवश्यक पोषक तत्व व ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है . रक्त की कमी के कारण देशभर में लाखों लोग अपनी जान गंवा देते हैं.

मूलतः रक्त 4 प्रकार के होते हैं A, B, AB और O
हर ग्रुप में RhD एंटीजेन पॉजिटिव और RhD एंटीजेन नेगेटिव के वजह से कुल 8 ग्रुप बन जाते हैं. एक औसत व्यक्ति के शरीर में 10 यूनिट यानि (5-6 लीटर) रक्त होता है. रक्तदान में केवल 1 यूनिट रक्त ही लिया जाता है. एक बार रक्तदान से आप 3 लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं

कौन कर सकते हैं रक्तदान
18 से 60 वर्ष की आयु तक का कोई भी स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान कर सकता हैं, अगर आपका वजन 45 किलो से ज्यादा है और शरीर मे हीमोग्लोबिन 12% से ज्यादा है तो आप रक्तदान कर सकते हैं. रक्त दाता का वजन, पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, बॉडी टेम्परेचर आदि चीजों के सामान्य पाए जाने पर ही डॉक्टर्स या ब्लड डोनेशन टीम के सदस्य आपका ब्लड लेते हैं. NACO के मुताबिक 1 स्वस्थ व्यक्ति हर 3 महीने पे 1 बार रक्तदान कर सकता है

कौन नही कर सकते रक्तदान
पीरियड से गुजर रही या बच्चे को स्तनपान कराने वाली महिलाएं रक्तदान नहीं कर सकतीं, रक्तदान के 48 घंटे पहले अगर किसी ने एल्कोहल का सेवन किया है तो रक्तदान नहीं कर सकता, 18 साल से कम उम्र वाला व्यक्ति और 65 वर्ष से अधिक साल का व्यक्ति रक्तदान नहीं कर सकता, अर्थात रक्तदान के लिए वही लोग योग्य होते हैं, जिनका वज़न 40 किलो से अधिक होता है.

रक्तदान को लेकर गलत भ्रांतियां

  • रक्तदान से कमजोरी होती है 
  • रक्तदान से शरीर मे खून की कमी हो जाती है 
  • रक्तदान करने से हमेसा चक्कर आती है 
पर ऐसा कुछ भी सही नही है 

रक्तदान के फायदे
एक रिसर्च में पाया गया की रक्तदान के कई फायदे भी होते हैं - जैसे हार्ट अटैक, मधुमेह, कैंसर की आशंका कम होन. शरीर में कोलेस्टॉल की मात्रा घटना. शरीर में ज्यादा आयरन होना भी शरीर के लिए हानिकारक हो जाता है. रक्तदान करने से आयरन की मात्रा भी शरीर में नियंत्रित रहती है. 

इस समय आवष्यकता इस बात की है कि रक्तदान से सम्बंधित भ्रांतियां दूर कर जागरूकता बढ़ाई जाए ताकि लाखो जान बचाई जा सकें 

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संदीप नाईक 
सी 55, कालानी बाग
देवास मप्र 455001
मोबाइल 9425919221
(देवास मप्र में रहते है, 34 वर्ष विभिन्न प्रकार के कामों और नौकरियों को करके इन दिनों फ्री लांस काम करते है. अंग्रेज़ी साहित्य और समाज कार्य मे दीक्षित संदीप का लेखन से गहरा सरोकार है, एक कहानी संकलन " नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ" आई है जिसे हिंदी के प्रतिष्ठित वागीश्वरी सम्मान से नवाज़ा गया है , इसके अतिरिक्त देश की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में सौ से ज़्यादा कविताएं , 150 से ज्यादा आलेख, पुस्तक समीक्षाएं और ज्वलंत विषयों पर शोधपरक लेख प्रकाशित है)

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