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तुम गए ही नही पिता- संदीप नाइक

Saturday, June 20, 2020

/ by Satyagrahi

अब चिट्ठियां आती नही तुम्हारे नाम - बिजली, फोन, मकान के टैक्स से लेकर राशन कार्ड तक में बदल गए है नाम 

कोई डाक, पत्रिका, निमंत्रण तुम्हारे नाम के आते नही 

हमारे बड़े होने के ये नुकसान थे और एक सिरे से तुम्हारा नाम हर जगह गायब था 

कितनी आसानी से नाम मिटा दिया जाता है हर दस्तावेज़ से और नाम के आगे स्वर्गीय लगाकर भूला दिया जाता है कि अब तो स्वर्ग में हो वसन्त बाबू और बच्चें तुम्हारे ऐश कर रहें हैं

बच्चों से पूछता नही कोई कि बच्चें कितना ख़ाली पाते हैं अपने आपको कि हर दस्तावेज़ से नाम मिटाकर अपना जुड़वाने में कितनी तकलीफ़ हुई थी और अब जब बरसों से सब कुछ बिसरा दिया गया है तो नाम भी लेने पर काँप जाती है घर की नींव जिसमे तुम्हारे पसीने और खून की खुशबू पसरी है 

घर में मिल जाती है कोई पुरानी याद तो घर के दरवाज़े और छतें सिसकियों से भर उठती है रात के उचाट सन्नाटों में ..

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संदीप नाईक 
सी 55, कालानी बाग
देवास मप्र 455001
मोबाइल 9425919221
(देवास मप्र में रहते है, 34 वर्ष विभिन्न प्रकार के कामों और नौकरियों को करके इन दिनों फ्री लांस काम करते है. अंग्रेज़ी साहित्य और समाज कार्य मे दीक्षित संदीप का लेखन से गहरा सरोकार है, एक कहानी संकलन " नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ" आई है जिसे हिंदी के प्रतिष्ठित वागीश्वरी सम्मान से नवाज़ा गया है , इसके अतिरिक्त देश की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में सौ से ज़्यादा कविताएं , 150 से ज्यादा आलेख, पुस्तक समीक्षाएं और ज्वलंत विषयों पर शोधपरक लेख प्रकाशित है)

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