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हम काले है तो क्या हुआ... - संदीप नाईक

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Wednesday, June 2, 2021


कई लोगों से मिला जिनके फोटो फेसबुक पर एक दम गौर वर्ण के थे और जब मिला तो काले - महिलाएं तो ठीक उसमें पुरूष भी शामिल थे और उम्रदराज अधेड़ पुरुष भी जब पूछा कि ऐसा क्यों तो "बोले ब्यूटी एप से हो जाता है"

कई बार आप मित्रों से मिलते है तो फोटो खींचते है, अक्सर लोग कहते है फेसबुक या इंस्टा पर मत डालना, आप ऐसे ही डाल देते हो - मतलब ? अरे यार फोटो डालने के पहले उस पर काम करना होता है थोड़ा - चाहे जो थोड़े ही डालते है

बहुत दुख होता है, अरे भाई इस सबकी जरूरत क्या है - जैसे है - वैसे रहें - ज्यादा बेहतर वही है , फिर हमारे यहां तो कृष्ण को भी काला कहा गया है रसखान और सूरदास ने कितना सुंदर लिखा है कृष्ण और उनकी माँ के साथ हुई रंग की बहस को - बाल सुलभ बहस को - फिर हम तो कृष्ण को भगवान मानते है ना

मेरा घर मे अभी भी नाम काळ्या यानि काला ही है क्योकि अपने घर मे सबसे काला हूँ पर अच्छा लगता है, हमारे एक मित्र का नाम कालूराम है पर उसे कालूराम कहो तो मिर्च लगती है - के आर कहो तो ख़ुश , मतलब क्या दिक्कत है यार - नाम मे क्या रखा है

फोटो जैसे हो वैसे लगाओ ना - क्या दिक्कत है -आपको कौनसा ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीतना है या गोरे होने का नोबल पुरस्कार, काला एक रंग है जो त्वचा में एक पिगमेंट के कारण रिफ्लेक्ट होता है, बल्कि भारत जैसे देश मे काला रंग ही सबसे मुफ़ीद रंग है जीने को - जीवन मे अभी तक बहुत गोरे लोगों को काले काम करते देख रहा हूँ, अपने साथ ही में काम कर रहें गोरे लोगों को मन में घटियापन और ओछापन लिए हुए, बारहों मास - चौबीस घण्टों षड्यंत्र रचते हुए और दुनिया को नष्ट करते हुए - इन जैसे गोरे लोगों ने ही दुनिया को जीते जी नरक बना डाला है , इनके भी काले - गोरे धन्धों और चरित्र को देखा है नजदीक से और यह कह सकता हूँ कि हम काले कुटिल लोग ही ठीक है इन मक्कारों से, ब्रिटेन, अमेरिका का गोरापन क्या है इतिहास और वर्तमान इसका साक्षी है ही

क्या हमारे सारे दक्षिण भारतीय मर जाये, क्या अफ्रीकन मर जाये या वे सभी लोग मर जाये जो काले है - और क्या गोरे रंगभेदी लोग अपनी आँखों की पुतलियों को फोड़ दें, बाल जला दें अपने ... और फिर जलवायु, वातावरण, काम की परिस्थितियां या जेनेटिक विरासत का क्या

हमारे यहां तो गोरा करने का एक भरा पूरा उद्योग है जो इस घृणित मानसिकता पर ही जिंदा है - कभी लोगों को वास्तविक जीवन में जाकर एकदम से देख लीजिए बगैर मेकअप के तो आप औचक रह जाएंगे और सच मे दिल से घृणा करने लगेंगे और तब समझ आएगा कि ये सौंदर्य प्रसाधन में अरबों रुपये क्यों लगे हुए है और FMCG का यह व्यवसाय कितना प्रभावी है बाज़ार में

मुझे तो फोटो को गोरा करना आता भी नही ना कोई एप है मोबाइल में



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संदीप नाईक 
सी 55, कालानी बाग
देवास मप्र 455001
naiksandi@gmail.com
(देवास मप्र में रहते है, 34 वर्ष विभिन्न प्रकार के कामों और नौकरियों को करके इन दिनों फ्री लांस काम करते है. अंग्रेज़ी साहित्य और समाज कार्य मे दीक्षित संदीप का लेखन से गहरा सरोकार है, एक कहानी संकलन " नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ" आई है जिसे हिंदी के प्रतिष्ठित वागीश्वरी सम्मान से नवाज़ा गया है , इसके अतिरिक्त देश की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में सौ से ज़्यादा कविताएं , 150 से ज्यादा आलेख, पुस्तक समीक्षाएं और ज्वलंत विषयों पर शोधपरक लेख प्रकाशित है)

THE REPUBLIC RALLY - Rashmi Ranjan

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Tuesday, January 26, 2021


Hoisting Nishan Sahib Flag on the lower rampart of the Lal Qila is a black spot on Indian history but the alarming leaked chat of fixing TRP, knowing confidential details of nation’s security for making money by Arnab Goswami is not?

Well, here my matter of concern is the trending hashtags on twitter #Delhi_police_lath_bajao. Where were these hashtags when 67-78 farmers died protesting on borders peacefully in biting cold and no leader from ruling government came to pay homage?

According to NRCB report of 2014, the number of suicides by farmers and farm labourers increased to 12,360 in 2014, against 11,772 in 2013 of these suicides, 5,650 were farmers suicides, in which half of the suicide were in Maharashtra. NCRB data points out that in 2474 suicides out of the studied 3000 farmer suicides in 2015 the victims had unpaid loans from local banks. There is no data provided for the same by NCRB after the year 2015.

Where were these hashtagers back then? Where were these hashtagers when farmers from different parts of India marched Delhi with demands and high hopes from the government in Delhi and had to return empty-handed.


Definitely, no violence is justified from protester's side nor from Police’s side. The kind of patience the farmer have been showing is commendable in cold and unexpected rain for months. The government has been adamant and has been testing patience since long and suddenly when farmers lose their patience they are again Khalistan, anti-national and what not. These farmers have seen the death of their kin and mourned over it on the border yet no leader from the government came to talk or sympathize. 

Instead, the respected Prime Minister choose to celebrate Devdeepavali. My question simply is how can one not lose the temper when the government is so adamant and ignorant?


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Rashmi Ranjan
(Advocate)

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