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बारिश में कूदते - नहाते दोस्तों की याद दिलाता अगस्त





किसी ने फोन करके कहा कि सर आपको जोड़ नही पा रहा हूँ लगता है पांच हजार दोस्तों की सीमा पुरी हो गई है, किसी को निकाल दें और मुझे जोड़ लें - मैं स्तब्ध था कि यह कौन है और क्या कह रहा है, मनुष्य जीवन मे मित्रता की कोई सीमा है और जो बन गया है क्या उसे हटाकर नया जोड़ा भी जा सकता है - थोड़ा मुश्किल था, मैंने अपने कुछ युवा मित्रों से पूछा कि क्या करूँ - तो बहुत सहज भाव से उन्होंने बोला जो आपको जम नही रहें उनको डिलीट कर दो और नए को जोड़ लो बहुत सरल है ! और यह तो आसान प्रक्रिया है सारे विकल्प वही मौजूद है - उनके इस साक्षी भाव पर हैरान था 

औचक सा रह गया मैं और जब पलटकर अपनी यादों की गठरी को खोला तो मेरे पास स्मृतियों के खजाने में हजारों दोस्त मिलें जो अभी भी पूरी शिद्दत और अपनी बुलंद उपस्थिति के साथ मेरे साथ मेरे में धड़कते है और जिनके होने से ही मैं हूँ और लगता है कि जब मैं कही होता हूँ और कुछ कहता हूँ तो मेरी उस उपलब्धि, विचार, परिपक्वता और एक संपूर्ण आकार में उभरी तस्वीर में असंख्य बिंबों, बिंदुओं और अकल्पित रंगों का समायोजन है जिन्हें दोस्त कहता हूँ 



बचपन का मित्र अफ़ज़ल हो या आनंद हो, अनिल जो ट्यूशन के हरिसिंह माटसाब के यहां सायकिल पर ले जाता था, स्कूली दिनों में बरसात के मौसम में छपाक छपाक करते हुए मेरा बस्ता उठाकर मुझे नाले पार करवाने वाला दिलीप तो असमय ही चला गया, कॉलेज के दिनों में भरी दुपहरी सायकिल पर लादकर ले जाना वाला राकेश आज अमेरिका में प्रतिष्ठित डाक्टर है जो हमसे मिलने एक बुलावे पर आ जाता है, मनोज, रवि, अरविंद, अनु, शोभा से लेकर सचिन, चिन्मय, विनोद, रेक्स, स्मिता, सपना, चैताली और प्रक्षाली नीलेश किस किसको डिलीट करूँ , अरुणाचल के तवांग में बैठी पत्रकार मित्र को या राजस्थान की शबनम जिससे लड़ते झगड़ते उम्र हो गई पर नेह की डोर नही टूटी, सुकमा के उन मित्रों को भूलूँ जो एक समय मोटा धान ख़ाकर कड़ा संघर्ष कर रहे है या वारंगल - खम्मम के जंगलों में शिक्षा की ज्योत जला रही युवा लड़कियों को डिलीट करूँ जो मेरी ताकत है, पुष्पेंद्र जैसे युवा साथियों को कैसे हटा सकता हूँ जो बिगाड़ के डर से नही डरते और हर बार हाथ पकड़कर कुछ भी बुरा करने से रोक लेते है, सुघोष हो या अम्बर जो अपनी विलक्षण दृष्टि से कविता कहानी की समझ समृद्ध करते है या मंडला में गजानन को भूलूँ जो आदिवासियों के बीच रहकर अलख जगा रहा है, अपने दो पैरों से दुनिया नापने वाला आलोक या रोज़ दिनभर पढ़ने की खुराक देने वाले गिरीश शर्मा को



अपने जीवन के लगभग उत्तरार्ध में मित्र दिवस के भव्य बाज़ार और आयोजन देखें है , वायवीय रिश्तों से बुने इस संजाल के लपेटे में हम सब है पर कुछ बहुत खूबसूरत रिश्ते मैंने मानवीय रिश्तों से परे जाकर भी देखे हैं जब एक फौजी स्कूल में काम करता था और फौजियों का जो रिश्ता देश से था - उसकी बराबरी कोई नही कर सकता, आज भी वास्तविक जीवन में हम देखते है कि जब कोई लाश सियाचिन या सरहद से आती है घर और उसके साथ जो सैनिकों की अनुशासित टुकड़ी आती है - कितनी संयत और स्नेहिल होती है. पिछले दिनों जिले के एक युवा शहीद के घर जाने का अवसर मिला, अंतिम क्रिया के बाद उसके सैनिक दोस्तो से उसकी मित्रता, खिलंदड़पन, बेबाकी और हिम्मत के किस्से सुने तो पूरे शरीर पर झुरझुरी आ गई , बातचीत के आखिर में एक युवा लांस नायक ने कहा जो गढ़वाल रेजिमेंट का था " हम तो मानते ही कि कोई शहीद हो गया, बस अब कोई सूचना नही आएगी उसकी और फ़ौज में 'नो न्यूज़ इज़ गुड़ न्यूज़ होता है' साब जी" यह कहकर सारे संगी साथी शून्य में तक रहें थे - बताईये क्या इसे भी दोस्ती कहेंगे, भावुक हो गए हम सब पर उसी शाम वो सब लौट गए कि सरहदें असुरक्षित है और देश से दोस्ती है



अगस्त माह दोस्ती का भी माह है, अपनी आजादी के जश्न का भी और भाई बहन के पवित्र प्यार में पगे बंधन को रक्षा सूत्रों से जन्मजन्मांतर तक बांधने का भी पर इन तीनों के मूल में देखें तो यह जुड़ने का माह है - सावन के तीज त्योहार जहां समुदाय को जंगल, पेड़ पौधों से जोड़ते है, स्वतन्त्रता दिवस की खुशी हमे देश से जोड़ती है और मित्र दिवस और रक्षा बन्धन मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है

प्रकृति ने हरियाली की चादर बिछाना शुरू कर दी है, पानी गिर नही रहा था पर किसी की मेहनत और दुआओं का असर है कि इधर आसमान फिर मेहरबान हुआ है और खेतों से लेकर नदी तालाबों में मुस्कुराहटों का साम्राज्य खिल रहा है, हमने जो इस वर्ष भुगता है - उसे याद ना ही करें तो बेहतर होगा , पर अब बारी हमारी है कि मित्रों को फ्रेंडशिप बेल्ट बांधते समय, आजादी की नुक्ती खाते हुए और रक्षा बन्धन मनाते हुए एक पौधा कम से कम इस धरती में जरूर रोपे और उसकी देखभाल करने का वैसा ही संकल्प लें - जैसे देश को, बहन को और मित्र को सदैव साथ और सुरक्षा का वादा कर निभाते है हम तभी अगस्त होने की सार्थकता भी है




संदीप नाईक

(देवास मप्र में रहते है, 34 वर्ष विभिन्न प्रकार के कामों और नौकरियों को करके इन दिनों फ्री लांस काम करते है 
अंग्रेज़ी साहित्य और समाज कार्य मे दीक्षित संदीप का लेखन से गहरा सरोकार है, एक कहानी संकलन " नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ" आई है जिसे हिंदी के प्रतिष्ठित वागीश्वरी सम्मान से नवाज़ा गया है , इसके अतिरिक्त देश की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में सौ से ज़्यादा कविताएं , 150 से ज्यादा आलेख, पुस्तक समीक्षाएं और ज्वलंत विषयों पर शोधपरक लेख प्रकाशित है)

सम्पर्क naiksandi@gmail.com

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